सूरज ढल चुका था। जयपुर शहर की रंगत धुंधली पड़ रही थी। गुलाबी शहर को आगोश में लेने के लिए, पैर पसार रहा था एक काला साया। लेकिन बिजली की रोशनी से शहर पर धीरे-धीरे सुनहरी रंगत चढ़ती दिखाई पड़ रही थी। ज्यादातर लोग घरों में होने के बजाए सड़कों पर थे। वो चैन की नींद से पहले रोजमर्रा की जरूरतों का साधन जुटाने के लिए बाजार से खरीदारी में जुटे थे।
वक्त को टुकड़ों में बांटती घड़ी की सूइयां शाम के सात बजे के पार जा रही थीं। कुछ लोग तो अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर कई बार नज़रें भी डाल चुके थे। वो बेकरार थे जल्दी घर वापसी के लिए। एक लय में दौड़ती घड़ी की सूइयां सात बजकर इक्त्तीस मिनट पर जा पहुंची।
वक्त को टुकड़ों में बांटती घड़ी की सूइयां शाम के सात बजे के पार जा रही थीं। कुछ लोग तो अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर कई बार नज़रें भी डाल चुके थे। वो बेकरार थे जल्दी घर वापसी के लिए। एक लय में दौड़ती घड़ी की सूइयां सात बजकर इक्त्तीस मिनट पर जा पहुंची।
मगर ये क्या इसके बाद तो मानों बस यंत्र चालित घड़ी की सूइयां रेंग भर रहीं थीं, जबकि गुलाबी शहर के लिए वक्त ठहर सा गया।
एक जोरदार धमाका और कोहराम मच गया। धमाका मानक चौक पुलिस के कंपाउंड में हुआ था। पुलिस कर्मी दौड़कर वहां पहुंचे पर लोग कुछ समझ पाते इससे पहले उनके कानों में गूंजी एक और धमाके की दूर की आवाज। इस बार निशाने पर था जौहरी बाज़ार। इसके बाद तो मानों सिलसिला ही शुरू हो गया एक के बाद एक पूरे नौ धमाके। महज पंद्रह मिनट के भीतर लहूलुहान हो उठा गुलाबी शहर।
दिन मंगलवार, क्या बाज़ार, क्या भगवान का द्वार हर ओर पुता था लाल लहू का रंग। पंद्रह मिनट के लिए धमाकों के शोर में डूबा शहर अब महज कराह रहा है। मानक चौक, जौहरी बाजार, त्रिपोलिया बाजार, बड़ी चौपाल, छोटी चौपाल, कोतवाली हर ओर बस तबाही।
दिन मंगलवार, क्या बाज़ार, क्या भगवान का द्वार हर ओर पुता था लाल लहू का रंग। पंद्रह मिनट के लिए धमाकों के शोर में डूबा शहर अब महज कराह रहा है। मानक चौक, जौहरी बाजार, त्रिपोलिया बाजार, बड़ी चौपाल, छोटी चौपाल, कोतवाली हर ओर बस तबाही।
अस्पतालों में खून की कमी पड़ गई। करीब 200 सांसे दवा और दुआ के सहारे जा टिकीं, वहीं सत्तर ज़िंदगियां घर वापसी की हर उम्मीद खो बैंठीं। उनके परिवार के हिस्से बचा कभी न खत्म होने वाला इंतजार......जबकि हमारे आपके पास चंद सवालात, नाकामी किसकी ? केंद्र या फिर राज्य सरकार....यानी बस बतरस का अंतर्द्वंद।
असलियत में एक बार फिर भोगाने को मिला भय........कहीं उस वक्त वहां होता मैं, या परिवार से जुड़ा कोई दूजा। सचमुच उम्मीद नहीं थी यादों के इस कोने को लहू इतनी जल्दी फिर से गीला कर जाएगा..................
नोट- राजस्थान पत्रिका से ली गई हादसे की तस्वीर।
9 comments:
मार्मिक अभिव्यक्ति।
जबकि हमारे आपके पास चंद सवालात, नाकामी किसकी ?
इसका उत्तर मिल जाए तो ऐसी वीभत्स, दारुण घटनाएँ ही क्यों घटेगी।
सरकार दोषी या मैं या फिर...कोई....और...
in sagthano ka pardafash sarkar ke bas me nahi to kyu na app aur hum shabdo ki baan se in ghatiya sangthano ka chirharan kar de..... waise achi hai
दर्द को अच्छी तरह से बयां किया है। लेकिन दर्द तो दर्द हीं हैं।
कैसी ये इबादत या खुदा तेरे नाम पे
कत्ल बन्दो का तेरे, तेरे नाम पे
जो चला था घर से नाम लेके तेरा
हुआ हलाक़ वो शख्स तेरे नाम पे
वो माने हैं शैतान को खुदा, या रब
पर कारनामा ये किया तेरे नाम पे
अब दुआ क्या करूं, तुझसे ऐ खुदा
बेटा मरियम का मरा, तेरे नाम पे
ये नापाक इरादे, ये हवस, ये कुफ्र
सब कुछ चलता है खुदा, तेरे नाम पे
बहुत मार्मिक!!
अति निन्दनीय एवं दुखद घटना.
tasveerene to bahut kuchh bayan karti hain.....magar aapki lekhni ne hamaare ehsas ko aur bal de diya...ghari ki suyino ke jariye is rang ke bhayawah roop ko dikhane ka prayaas achha hai..yakinan yeh tasveeren kisi aur ki nahi ,hamaari aur hamaare apno ki hain...
जब कुछ इंसान मर जाते है
तो बहुत सारे इंसान मारे जाते है..
जयपुर जैसे शांतिप्रिय शहर में ऐसी घटना की उम्मीद नही की थी.. अभी तक मन विचलित है..
ईश्वर से प्रार्थना है हादसे के शिकार लोगो को शांति मिले और दोषियो को सज़ा..
"यादों के इस कोने को लहू इतनी जल्दी फिर से गीला कर जाएगा..."
खूबसूरत पंक्तियाँ...!!!
kyaa kahun, bas duaa yahi hai ki aagey phir aisa kabhi na ho..
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