Friday, 2 May 2008
गीली यादें...
जोर की बारिश से बाहर पेड़ों की पत्तियों पर जमीं गर्द धुल गई। पत्तियों पर नई चमक दिख रही है। गहरी धानी रंग की पत्तियों से टपकती बारिश की बूंदे, पत्तियों के आखिरी कोर पर पहुंचकर मोतियों की शक्ल अख़्तियार करतीं हैं। पत्ती का दामन छोड़ने से पहले वो मोतियों की आभा से भर उठती हैं। धरती के अंतस में समाने का कहीं से कोई मलाल नहीं उन्हें। ग़ाज भर गई है, धरती पर बुलबुले उठ रहे हैं।
प्रशांत का मन उद्विग्न है। अपने कमरे की खिड़की से वो बाहर निहार रहा है। प्रशांत को लगता है कि उसके भीतर से कुछ रिस रहा है। कई अनसुलझे सवालों की गुत्थियां उसमें बेचैनी भर रही हैं। मौसम से तादात्म बिठाने में उसे ख़ासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
अभी ग्यारह जुलाई की ही तो बात है। मुंबई के लोकल ट्रेनों में हुए धमाकों में एक सौ सत्तासी बेकसूर लोगों की जानें सियासत को सबक की भेंट चढ़ गईँ। एक झटके में एक सौ सत्तासी जीती जागती जिंदगियां मांस के लोथड़े में तब्दील हो गईं।
किसने किस पर धौंस जमाई, किसने किसको सबक सिखाया...। ये तय हो भी जाए तो क्या वो ज़िंदगियां वापस लौट सकती हैं ?
हादसे के कुछ ही देर बाद प्रशांत बांद्रा पहुंच गया था। स्टेशन पर अफरा-तफरी मची हुई थी। बारिश जारी थी, राहत का काम चल था। प्रशांत की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वो किसी से कुछ पूछे। ज्यादातर चेहरों पर भय था, वहीं प्रशांत कुछ लोगों की नज़रें अपनी ओर तनी पाता। दिल से महसूस करना तो दूर अभी वो पूरा दृश्य देख भी नहीं पाया था कि उसका सेलुलर बज उठा।
प्रशांत की नज़र अनायास ही प्लेट फॉर्म नंबर दो के बुक स्टॉल पर रखे टेलिविज़न पर पड़ती है, न्यूज चैनल का एंकर पूरे तेवर में है....’ जैसा की हम आपको बता चुके हैं, ये न्यूज हमने ब्रेक की है.... और सीधे चलते हैं बांद्रा स्टेशन, ये धमाके के बाद की पहली तस्वीरें हैं, हमारे संवाददाता प्रशांत घटना स्थल पर मौजूद हैं... ’
जी प्रशांत क्या हालात हैं इस वक्त वहां के...
अवाक प्रशांत मशीन की तरह शुरू हो जाता है।
पारितोष यहां पर अफरा-तफरी मची है कोई कुछ भी अभी बताने को तैयार नहीं है, लोगों के चेहरे पर भय साफ देखा जा सकता है। हम अपने कैमरामैन से कहेंगे कि ट्रेन के उस डिब्बे की तस्वीरें दिखाए जिसमें ये धमाका हुआ है...।
पारितोष हमारे साथ एक दर्शक भी मौजूद है जिसकी आंखो के सामने ये हादसा हुआ। आइये जानते हैं इन्होंने क्या देखा। ये कहते हुए प्रशांत ने बिना कुछ सोचे समझे सामने खड़े व्यक्ति के मुंह के पास माइक लगाया ही था कि तभी......
प्रशांत हम आपको थोड़ी देर के लिए रोक रहे हैं, हमारे साथ इस वक्त मौजूद हैं रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव जी, लालू जी एक बार फिर सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताते हुए लोकल ट्रेन पर निशाना साधा गया...।
देखिए ये बहुत दु:ख की घटना है। कायरता का काम किया है आतंकी लोग। राहत का काम चल रहा है। ऊ लोग अपने मकसद में कामयाब नहीं होगा....।
बदहवाश चेहरे मांस के लोथड़े और लालू का लाइव... अब हमें ये नहीं सोचना पड़ता कि आप ऐसे में क्या देखना पसंद करेंगे। तकनीकी दौर में हम ये सब आपको एक साथ दिखा सकते हैं, दिखा रहे हैं। प्रशांत लालू को सुनते-सुनते कुछ सोच रहा है तभी एंकर की आवाज उसके कानो में पड़ती है।....क्षमा कीजिएगा ये तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं, मगर हम मजबूर हैं हम आपको लाइव दिखा रहे हैं ये तस्वीरें....।
प्रशांत सोचता है चलो दिन में इस उत्तेजना के साथ दिखाया माफी मांग ली लेकिन रात में तो खाने के साथ परोसना होगा। जायके का खास ध्यान रख कर। गुनाह की ऐसी तस्वीर पेश करने का मौका भला चूकना कौन चाहेगा।
.......आखिर समय ने ये कौन सी रफ्तार पकड़ ली है कि महसूस करने से पहले ही दौर गुज़र जाता है।.... शायद यही वजह है कि बेहद प्लान कर की गई चीजें भी हादसा नज़र आती हैं। प्रशांत की बेचैनी का तकाज़ा भी समय ही है।
......आखिर उस चीथड़ा बच्ची की मुठ्ठियों में कसी गुड़िया की कसक आज मुझे क्यों महसूस हो रही है। उस दिन तो हमारा सारा ध्यान इसी बात पर था जो हुआ सो हुआ अब बस किसी तरह विस्फोट के जिम्मेदारी की खबर ब्रेक हो जाए....। इस आशय की पूर्ति के लिए हमने कई सारे कयास लगा भी डाले। लगता था कि किसी आतंकी संगठन के जिम्मेदारी लेते ही हम आज की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे ।
......बारिश जारी है, ढेर सारी गाज एक ही जगह इकठ्ठा हो गई है।.....लालू और लाशें...। सियासत और अलकायदा, सिमी या फिर कोई और....प्रशांत उधेड़बुन में है, आखिर ये गाज एक ही जगह क्यों इकठ्ठा हो रही है....। कहीं नाले का मुहाना तो नहीं बंद हो गया...। शायद ऐसा ही है...तभी ये सीवर का पानी भी फैल रहा है....और बदबू भी महज कमरे में नहीं बल्कि सांसों के जरिए भीतर उतर रही....एक पल के लिए प्रशांत को लगा क्या ये सड़ांध सीवर के पानी की ही है या फिर आत्मा..........?
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7 comments:
Apki gili yaden dil ko bhigo gain
aapki abhivyakti se man bhig utha
भाव जब शब्दों के ज़रिए कागज पर उतरते पर उतरते हैं तो कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आती है... अच्छा लगा.
अभिनव राज,
इंडिया टीवी.
गहरी भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
jindgi isi ka naam hai
jo pasand naa ho wo dekhne
sochne aur bhogne par majboor hona padta hai
संदीप - सही में महसूस करने से पहले ही गुज़र जाता है - कहाँ कहाँ से - कहाँ से कहाँ तक - कभी ऐसी दौड़ नहीं देखी जहाँ भागना न पड़े - पुरस्कार के लिए नहीं तो जीविका के लिए, जीविका के लिए नहीं तो परिवार के लिए, परिवार के लिए नहीं तो आबरू इज्ज़त के लिए, सम्मान के लिए नहीं तो वहां बने रहने के लिए जहाँ पहुँच गए - उफ्फ्फ़ - तुम्हारे नायक के सवालों का अंत नहीं है - शायद गीता इसीलिए लिखी गई थी!! - शायद इसीलिए कुछ पानी पहाडों के पोखरों में रह जाता है !! - साधन और संवेदना दोनों ही ज़रूरी हैं - किस पाले में कितना रहेगा तुम्हारा नायक यह तो समय बताएगा ? - सस्नेह - मनीष
बहुत बढ़िया संदीप जी, वाकई आपने दिल को झकझोर कर रख देने वाली यादें ताजा कर दी हैं...
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