Wednesday 13 November, 2013

दृष्टा

हां...
हम इस कलयुगी समाज के दृष्टा हैं
मर्यादाओं की बातें पढ़ते हैं
रचते नहीं
नारी सम्मान की मिसालें देते हैं...
करते नहीं

सीता के अपहरण पर
अहंकारी रावण का वध
द्रोपदी के चीरहरण पर
कौरव वंश का नाश
सिर्फ हमारे बतरस की चर्चा का हिस्सा है
क्योंकि...
हम इस कलयुगी समाज के दृष्टा हैं

बेटी के सुरक्षित घर लौटने की
बस बाट जोहते हैं
अपशकुन होने पर
समाधान नहीं हम खोट खोजते हैं
कभी कपड़े, कभी वक्त, कभी आजाद ख्याली
अब उनकी लक्ष्मण रेखा का हिस्सा हैं

हम इस कलयुगी समाज के दृष्टा हैं
और हम भी इस व्यभिचार का हिस्सा हैं.....

Saturday 3 March, 2012

ईश्वर...











लाउडस्पीकर पर गूंजती अजान
प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
मंत्रोच्चार
सलीब पर टंगा रूप हो
या फिर गुरूबानी का संगीत हो
जलाभिषेक, अक्षत, चंदन
रोली और पुष्प वर्षा पर
इतराओ मत ईश्वर...



सच तो ये है कि
तुम्हारे ये आकार
तुम्हारे अस्तित्व को चुनौती हैं
पाखंड का ये आडंबर
तुम्हे मोहपाश में बांध चुका है
इतना ही नहीं समाज
तुम्हें भोग लगाकर पापों का
साझीदार बना चुका है।


तुम्हारे ये रूप प्रतिकार
और प्रहार की पैदाइश है
समाज ने तुम्हें चुनौती देकर
पाषाण पर झीनी, हथौड़े की चोट से
तुम्हे आकार दे डाला
तुम निराकार थे पर तराशे गए
और अब तोड़े भी जा रहे हो।


सृष्टि के सर्जक भले रहे हो
पर अब समाज का प्रतिरोध
तुम्हें जैसे तैसे गढ़ रहा है
और जहां तहां रख रहा है
सर्वत्र थे पर अब आलय बनाकर
तुम मंदिर, मस्जिद, चर्च और
गुरूद्वारे में सीमित किये जा चुके हो।


यकीन करो ईश्वर तुम निराकार भले थे
आकार में तुम्हारी हार है।


(नोट- संशोधन जारी रहेगा)