गीले छाजन से भाप बन उठता
ओस भीगे उपलों का धुआं
हिलोर लेने लगा रात भर शांत रहा
पाकड़ के नीचे का कुआं।
चूं-चूं करती रहट की घिरनी
भरी गागर से गिरी बूंदें खनकतीं।
मुर्गे की बांग के साथ,
आई बछड़े के रंभाने की आवाज़।
आस-पास गूंजने लगा कोरस
जांते में पिसता अनाज।
रात सुनी कहानी की परियां
जो ख्वाबों में थीं बसी,
आसमां में अब तक टंके तारों में
जा छिपीं ।
अलसाई देह ने ली अंगड़ाई
ओस भीगे उपलों का धुआं
हिलोर लेने लगा रात भर शांत रहा
पाकड़ के नीचे का कुआं।
चूं-चूं करती रहट की घिरनी
भरी गागर से गिरी बूंदें खनकतीं।
मुर्गे की बांग के साथ,
आई बछड़े के रंभाने की आवाज़।
आस-पास गूंजने लगा कोरस
जांते में पिसता अनाज।
रात सुनी कहानी की परियां
जो ख्वाबों में थीं बसी,
आसमां में अब तक टंके तारों में
जा छिपीं ।
अलसाई देह ने ली अंगड़ाई
और
भोर हो गई।
भोर हो गई।
3 comments:
वाह, बहुत उम्दा शब्द चित्रण है भोर होने का, बधाई.
रहट की आवाज़ सुनाई दी ..
संदीप - देखो ग़नीमत है, कहानी की परियां रात को तो हैं [ :-)] - सस्नेह मनीष
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