Friday 21 March, 2008

आओ रंग भरें...

लो...खेल ली होली....
सामने था
एक खाली कैनवास
बहुत देर रही बेचैनी
कहां रंग भरूं
इस सूनेपन को
क्या आकार दूं?
कुछ देर बाद
नुमाया थी अधूरी जिंदगी
अंधेरे में डूबी सीढियां
और...
हाथों में थमा था
आकार लेता अधूरा सपना.....






नोट: चित्र बनाने से पहले की उधेड़बुन कैमरे में कैद करने के लिए भाई राजेश पुरक़ैफ को धन्यवाद।

5 comments:

Unknown said...

संदीप - होली की शुभ कामनाएं

कंचन सिंह चौहान said...

waah

Anonymous said...

रंगो से खाली दिवार* पर क्या खूब उकेरा है चित्र

*दिवार को यहाँ आप अपना कैनवास ही समझिये, होली मुबारक इन्ही रंगों के साथ

sumeet "satya" said...

mumbai main nai shuruaat ke lie badhaiyan. lekin is tarah sapne adhure kab tak rahenge...... sapno ko jald pura kar apni zindagi ki nai painting banayen.

ब्रजेश said...

साले चूतिये गधे पाजी पैजामे के नाडे बलाउज की हुक। हम यहां नोएडा में सहारा के सामने चाय के साथ गम गलत करते रहते हैं और तुम हो कि मुंबई की राह पकड़ ली। न तो फोन किया और न ही किसी से तुमहारे बारे में पता ही चला। इधर हमारा कुंवारापन जाता रहा। हमारी शादी हो गयी भाई। लौटकर दिलली आऒ तो शरीके हयात से मिलवाता हू।
इतना अचछा बलॅाग बनाने के लिए बधाई। बधाई इस बात के लिए भी कि तुमने अपनी रचनातमकता को जिंदा रखा है।
( अपशबद बोलने के लिए माफ करें। गालियां देने से खुद को रोकना अपने साथ गुनाह होता।)
चूतिए माफी तुमसे नहीं उन शरीफ लोगों से मांगी है जो सांझ- सवेरे पर आते हैं।