Tuesday 8 April, 2008

देखो मैं लौट आया....












तुम बेहद ताकतवर हो
पल भर में,
कुछ भी तबाह कर सकते हो,
किसी के सपनों पर
बैठा सकते हो पहरे,

बेटी के हाथ पीले करने का
ख्वाब संजोने वाली आंखों में
तुम डाल सकते हो
पिसी हुई कांच की किरकिरी।

साहूकार का कर्ज चुकता कर
चैन की ज़िंदगी बसर करने की
आस पर
सिर्फ तुम लाद सकते हो
ताउम्र का ब्याज।

तुम वाकई ताकतवर हो
इसलिए कि तुम
‘रार-नीति’ के रोबोट हो,
और
सियासत की चाभी से
दरिंदगी का नंगा नाच
दिखाते हो।

लेकिन...
इस असीम ताकत की वजह है
तुम्हारी बुझदिली,
क्योंकि तुम
अपनी ही अंजाम दी गई करतूतों को
देखने की हिम्मत नहीं रखते।

इंसानियत को हलाक
करने की फिराक में
तुम अगर कुछ मार सकते हो
तो वो है, तुम्हारी आत्मा।

असलियत तो ये है
कि तुम खुद की
परछाईं से भी डरते हो।
देखो.... मैं लौट आया,
पर तुमने क्या पाया ?

नोट: ये तस्वीर है श्रीकिशुन की जो बिहार से सपनों की नगरी (मुंबई) में हजारों अरमानों के साथ आया था।

3 comments:

Udan Tashtari said...

दुखद..वाकई मानवता शर्मसार घृणित इस कृत्य पर.

Unknown said...

बिल्कुल दिल की बात संदीप - हर बार जोड़ने की बजाय तोड़ने वाले - गुस्सा छलक कर उठा दिखा - मनीष

ब्रजेश said...

हमारी बड़बड़ाहट भी बेशर्म चुप्पी से बेह्तर है। पर तुमने तो शब्दो को खन्जर बना डाला। लड़ते रहो मेरे दोस्त। यही तो सबूत है हमारे ज़िन्दा होने का।