ज़िंदगी तालीम और
तज़ुर्बों की कतरन
कभी रूखी
कभी गीली
कभी रंगीन
तो कभी
बदरंग।
ज़िंदगी
हंसती, रुलाती
खीझती, मनाती
कभी गुमसुम
तो कभी
चहचहाती
पायताने बैठती
तो कभी सिरहाने
ज़िंदगी रोज सिखाती है
जीवन के मायने।
कभी उड़ती पतंग
तो कभी
मांझे की तेज धार
ज़िंदगी है
कभी न थमने वाली
रफ़्तार......
Saturday, 26 January 2008
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2 comments:
संदी......प - "कभी उड़ती पतंग/ तो कभी/ मांझे की तेज धार"
- क्या बात है - तो अब बताओ कौन गुल और कौन गुलज़ार?
[देर से आने की माफी] - मनीष
sandeep pyare
maafi, Hindi keyboard load nahi is computer par.
saanjh-savere me to mazaa aa gaya. sundar, komal bhawanon ke badhiya portraits hain yahan.
badhai.
prabhat
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