Saturday, 27 December 2008

हौसला


ताज से उठती आतंकी लपटों में
तिनकों से बना वो आशियाना जलते देखा है

पतंगों की तो बात दीगर
उस वक्त, परिंदों को परवाना बनते देखा है

झुलस उठे थे पर उनके
गुम्बदों, मीनारों पे वो फिर-फिर लौटे

यकीन करो, उनकी इस हरकत से
तबाही के हसरत की पेशानी पर

मैने भी पसीना देखा है.......।

3 comments:

महेंद्र मिश्र.... said...

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति लिखते रहिये . धन्यवाद.

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छा लिखा है....बधाई।

vipinkizindagi said...

achcha shabd sanyojan
achchi rachna