
ताज से उठती आतंकी लपटों में
तिनकों से बना वो आशियाना जलते देखा है
पतंगों की तो बात दीगर
उस वक्त, परिंदों को परवाना बनते देखा है
झुलस उठे थे पर उनके
गुम्बदों, मीनारों पे वो फिर-फिर लौटे
यकीन करो, उनकी इस हरकत से
तबाही के हसरत की पेशानी पर
मैने भी पसीना देखा है.......।
3 comments:
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति लिखते रहिये . धन्यवाद.
बहुत अच्छा लिखा है....बधाई।
achcha shabd sanyojan
achchi rachna
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