एक दिन
जब मैं दादू के साथ सोया था
लिपटकर अचानक खूब रोया था
नहीं उभरी थी
वो सीघों वाली आकृतियां
न ही चमकी थीं
लाल डोरे वाली आंखे
ढुलकते टेसुओं के साथ
सपनों में उस रात,
दादू आए थे।
फिर कभी ऐसे न आना
दादू सपना मत बन जाना
सुबकते हुए कहा था मैने
मत दिखाना दादू, मत दिखाना
ऐसे सपने
महसूस किया था
हथेलियों का कंपन गालों पर अपने
बोले थे दादू, बहुत ही धीमे
मेरे अपने नन्हें
संजोए रखना इन्हें
बस संजोए रखना इन्हें।
Thursday, 27 December 2007
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