Thursday, 27 December 2007

दादू

एक दिन
जब मैं दादू के साथ सोया था
लिपटकर अचानक खूब रोया था
नहीं उभरी थी
वो सीघों वाली आकृतियां
न ही चमकी थीं
लाल डोरे वाली आंखे
ढुलकते टेसुओं के साथ
सपनों में उस रात,
दादू आए थे।
फिर कभी ऐसे न आना
दादू सपना मत बन जाना
सुबकते हुए कहा था मैने
मत दिखाना दादू, मत दिखाना
ऐसे सपने
महसूस किया था
हथेलियों का कंपन गालों पर अपने
बोले थे दादू, बहुत ही धीमे
मेरे अपने नन्हें
संजोए रखना इन्हें
बस संजोए रखना इन्हें।

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