मेरी स्मृति में
एक नदी है
उफनाई हुई सी
घड़ी का एक पेंडुलम है
दोलन करता हुआ सा
आज जब मैं
अपनी स्मृतियों को
वर्तमान से जोड़ता हूं
उफनाई हुई नदी की जगह
तुम्हारे रूप को पाता हूं
और पेंडुलम की तरह
दोलन करता हुआ मैं
इकाईयों में
विभाजित होता रहता हूं
अचंभित हूं
मेरा वर्तमान,
भूत के विस्तार में
इतना सीमित कैसे हो गया।
Sunday 30 December, 2007
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