Sunday 30 December, 2007

स्मृति शेष

मेरी स्मृति में
एक नदी है
उफनाई हुई सी
घड़ी का एक पेंडुलम है
दोलन करता हुआ सा
आज जब मैं
अपनी स्मृतियों को
वर्तमान से जोड़ता हूं
उफनाई हुई नदी की जगह
तुम्हारे रूप को पाता हूं
और पेंडुलम की तरह
दोलन करता हुआ मैं
इकाईयों में
विभाजित होता रहता हूं
अचंभित हूं
मेरा वर्तमान,
भूत के विस्तार में
इतना सीमित कैसे हो गया।

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