Tuesday 18 January, 2011

ओ...हरामजादे

दम घोटता सा लगता है
सिगरेट का धुआं
पर छोड़ा नहीं जाता
जब भी कुछ दरकता है भीतर
हलक में उतारने को
आतुर होता हूं ये धीमा ज़हर /

मेरी बेचैनी बढ़ा देती है
तुम्हारे होंठों की थिरकन
मंजिल पा लेने की
सीढ़ी नज़र आती है तुम्हें
मेरे माथे की हर शिकन /

व्यवस्था के दंश तले
खुद को कितना
अव्यवस्थित बना लिया
बिना किसी गलती के
तुमने दुत्कारा
और हमने सह लिया/

अनिष्ट की आशंका के बोझ तले
मेरुदंड कमान बनता रहा
और मैं बस खुद को
छि: थू कर धिक्कारता रहा/

पर भीतर ही भीतर
भावना और विवेक में ठन गई
और तुम्हारी घुड़कियों की गांठ
से प्रत्यंचा तन गई…/

शब्दभेदी तुणीर में अब तीर है
ओ—हरामजादे....बचना
क्योंकि निशाने पर सिर्फ तू है।

9 comments:

Ravi Pratap Dubey said...

My Fev Pick--
अनिष्ट की आशंका के बोझ तले
मेरुदंड कमान बनता रहा
और मैं बस खुद को
छि: थू कर धिक्कारता रहा/

----- har dil ki daastan aapne bata diya. sundar

अभिनव आदित्य said...

"व्यवस्था के दंश तले
खुद को कितना
अव्यवस्थित बना लिया..."
इन पंक्तियों से कहीं ना कहीं मैंने भी जुड़ाव महसूस किया..
अच्छा लगा ये देखकर कि सन्दीप बाबू ने बहुत दिन बाद ब्लॉग में कुछ टिपटिपाया है..

आशीष कुमार said...

व्यवस्था पर सुंदर चोट. यूं तो मैं सिर्फ कविता से बहुत जल्दी प्रभावित नहीं होता लेकिन दद्दू की कविता की चोट बहुत गहरी दिखाई देती है। पूंजी और और पूंजीवादी व्यवस्था ने कैसे एक सीधे साधे और निर्गुट शख्स की जिंदगी को अव्यवस्थित कर दिया है इन पक्तिंयों से साफ है...
व्यवस्था के दंश तले
खुद को कितना
अव्यवस्थित बना लिया
बिना किसी गलती के
तुमने दुत्कारा
और हमने सह लिया

sumeet "satya" said...

sarfaroshi ki tamanna ab hamare dil me hai....dekhana hai jor kitna bajuye katil me hai.

raghunath saran said...

संदीप भाई, बस यही कहना था..आप मेरी जुबां बन गए...आपकी नई शख्सियत देखी, संजीदा और उम्दा...अच्छा लगा, अपना लगा...रघुनाथ शरण

अजित त्रिपाठी said...

बहुत खूबसूरत सर...काफी वक्त लगा दिया इस कालजयी को रचने में....रोज़ आपके सांझ सवेरे से खाली हाथ लौटना पड़ता था...
सुंदर रचना साधुवाद...

www.kavita-ratnakar.blogspot.com said...

Bahut khub -Sandeep

Unknown said...

यार ये मिस इसलिए हुई के बड़े दिनों से हासिल ही खुल रहा था - लिंक गलत निकला
welcome back

www.kavita-ratnakar.blogspot.com said...

आज आदमी
हरामजादा होने पर
हरामजादे का प्रमाण
मांगता है
उस प्रमाण का
सत्यापन कैसे हो